Tuesday, October 21, 2008

लौटा मुंबई

महीने भर बाद लौटा मुंबई. सुबह ९.३० बजे अगस्त - क्रांति राजधानी एक्सप्रेस बोरीवली पहुँची. रेडियो पर राज ठाकरे के लिए गैर जमानती वारंट की ख़बर मिल गई थी. स्टेशन पर भीड़ थी- जैसी होती है -पर ऑटो रिच्क्षे ने जब दहिसर चेक नका जाने के लिए ७० रुपये मांगे तभी में समझ गया- मुंबई एक और दिस्तुर्बंस से गुजर रही है. लोग डरे रहते हैं और नुकसान से बचाना चाहते हैं - सिर्फ़ इसी लिए मुंबई बंद करना आसान होता है. टीवी चैनलों के लिए सुनहरा मौका है- जब सभी टीवी खोले बैठे हैं. राजनीति की दुकान चल रही है....देखते रहिये .... जो सड़क पर नही हैं वो अपना काम कर रहे हैं. बहुत से ऑफिस से महिलायें गहर भेजी जा चुकी हैं . कोचिंग क्लास कैंसिल है. मुंबई की भागती दौड़ती ज़िन्दगी में कुछ लोगों के लिए ये छुट्टी का दिन हो सकता है....आगे जानने के लिए टीवी खोलकर बैठे रहिये- हमारी ही तरह!

Tuesday, September 30, 2008

दामले जी दोबारा देखेंगें - welcome to सज्जनपुर


तबियत गदगद हो गयी श्याम बाबू! जब कोई इस तरह से फ़िल्म की तारीफ करे - तो अच्छा तो लगेगा ही. दामले जी चित्रकार हैं. जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट मैं आर्ट का इतिहास पढ़ाते हैं. हिन्दी सिनेमा मैं बढ़ते पश्चिमी प्रभाव से दुखी भी. हाँ - ये है फ्रेश फ़िल्म आज कल के समय की. पुरी तरह से भारतीय. थोड़े खुले दिमाग की. बिना अश्लीलता के - समझदार दर्शकों के लिए. फ़िल्म मैं रवि झाँकल ने मुन्नीबाई का काम कमाल किया है. 'वे straight हैं न ?' मेरे एक कन्या मित्र ने पूछ लिया था . श्याम बेनेगल के साथ मैंने 'हरी भरी' मैं काम किया था इस लिए इस फ़िल्म से एक विशेष स्नेह हो गया. सभी बधाई के पात्र हैं. पर बधाई मार्केटिंग टीम को भी- जिसने इसे लोगो तक पंहुचाया...

Thursday, September 25, 2008

चिठ्ठाजगत खोल के बैठ जाता हूँ


सुबह सुबह अखबार की जगह चिठ्ठाजगत खोल के बैठ जाता हूँ.
अब अखबार पढ़ने की जरुरत महसोस नही होती.
कोई के अख़बार पढ़ने मैं क्या है
कौन सी फ़िल्म आ रही है.
किस फ़िल्म का प्रमोशन चल रहा है
ऋषि कपूर रणबीर के बाप का रोल करना चाह रहे हैं
प्रीटी जिनता वगैरह पुराणी नायिकाओं को श्रद्धांजलि देने वाली हैं.
उफ
-चलो अब मिला कुछ नया!

ब्लॉग के बारे मैं कई ओब्सेर्वेशन हुए हैं
जैसे -
आप जो सोचते हैं - जैसा जीते हैं
वैसा ही आपका ब्लॉग होगा
लंबे समय तक झूठा ब्लॉग नही कर सकते आप.

मेरी कोशिश है कि- मैं अपने पसंद कि चीजों को शेयर करूँ -
बस इसी भरोसे कर रहा हूँ- ब्लोगिंग .

पहले कमेंट्स कि तलाश मैं रहता था
अब आस छोड़ दिया है
लोग आते हैं
इतने से ही संतुष्ट हूँ

उम्मीद है सही जा रहा हूँ

अगले हफ्ते महीने भर के टूर पर जा रहा हूँ
शायद रेगुलर लिखना नही हो पायेगा
पर लौट के batunga

एक विनम्र सुझाव है-
आप यदि अपने आस पास के जीवन और जगहों के बारे मैं लिखें तो और बेहतर होगा
बड़े शहरों के बारे पढ़ने को ज्यादा कुछ नही रहता.

Wednesday, September 24, 2008

प्यार बांटते चलो ....


नक्से पर लाल निशान देखा कर मज़ा आ जाता है.
लाखों हैं यंहा दिल वाले....ब्लॉग लोग खूब पढ़ रहे हें- निश्चय ही फिल्मी गाने की वजह से...
पर एक बात तो तय है-
हम सभी को प्यार की भूख है- और सभी परेशां हैं-
जबकि मामला इतना आसान है-
आप प्यार देने मैं लग जाओ ---

अब सवाल ये उठेगा ....
कैसे?

तो थोड़ा और आसान करने की कोशिश करते हैं
आप देने मैं लग जाओ

'देना' giving  ही प्यार है
give a smile!   and enjoy!  

आजमा के देखो~

Monday, September 8, 2008

लाखों हैं यहाँ दिल वाले- पर प्यार नहीं मिलाता...


पहले सोचा था- खुद लिखूंगा - पर कुछ मित्रों ने चाह है की उनको ओशो से जुड़े पोस्ट अच्छे लगे.
ओशो के नाम से कई मित्र सहज नहीं होते. मेरी कोशिश है की उनको थोडा रस लेने का मौका दिया जाये.
ओशो सा मेरा रिश्ता एक मित्र का रहा है - जो सचमुच ज्ञानी है - जिससे जानने को बहुत कुछ है.
अगर ये पोस्ट जीवन में कुछ जोड़ सके - तो और क्या चाहिए -
यहाँ ओशो प्रेम की आवश्यकता के बारे में बात कर रहे हैं-
लाखों हैं यहाँ दिल वाले- पर प्यार नहीं मिलाता...
से लेकर
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ....





केवल करुणा ही स्वास्थ्य प्रदान करती है। क्योंकि मनुष्य में जो भी अस्वस्थ है वह प्रेम की कमी के कारण है। जो भी मनुष्य के साथ ग़लत है, कहीं न कहीं प्रेम से जुड़ा है। वह प्रेम नहीं कर पाया, या उसे प्रेम नहीं मिल पाया। वह स्वयं को बांट नहीं पाया। सारी व्यथा यह है। इस कारण भीतर बहुत सी ग्रंथियां बन गयीं हैं।

भीतर के यह घाव कई रास्तों से सतह पर आ जाते हैं:वह शारीरिक रोग बन सकते हैं, वह मानसिक रोग बन सकते हैं। लेकिन गहरे में कहीं मनुष्य प्रेम की कमी से पीड़ित है। जैसे देह के लिये भोजन की आवश्यकता है,ठीक वैसे ही आत्मा के लिये प्रेम की आवश्यकता है। देह भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकती और आत्मा प्रेम के बिना नहीं। वस्तुत: बिना प्रेम के आत्मा पैदा ही नहीं होती, इसके जीवित रहने का तो प्रश्न ही कहां।

तुम बस सोचते हो कि तुम्हारे पास आत्मा है;मृत्यु के भय के कारण तुम विश्वास करते हो कि तुम्हारे पास आत्मा है। लेकिन जब तक तुमने प्रेम नहीं किया तुम यह जान नहीं सकते। केवल प्रेम में ही व्यक्ति महसूस कर पाता है कि वह देह से कुछ अधिक है, मन से कुछ अधिक है।

इसी कारण मैं कहता हूं कि प्रेम स्वास्थ्य्प्रद है। करुणा क्या है? करुणा प्रेम का शुद्धतम रूप है। काम-वासना प्रेम का निम्नतम रूप है, करुणा प्रेम का उच्चतम रूप है। काम-वासना में संपर्क मूलत: शारीरिक होता है; करुणा में संपर्क मूलत: आध्यात्मिक होता है। प्रेम में करुणा और काम-वासना, दोनों का समावेश होता है, शारीरिक और आध्यात्मिक,दोनों का मिश्रण होता है। प्रेम काम-वासना और करुणा की मध्य में है।

करुणा को तुम प्रार्थना भी कह सकते हो। करुणा को तुम ध्यान भी कह सकते हो। ऊर्जा का उच्चतम रूप करुणा है। करुणा के लिये अंग्रेज़ी का शब्द कम्पैशन (Compassion) बहुत प्यारा है: इसका आधा पैशन-Passion ( काम-वासना) है। किसी तरह पैशन इतना शुद्ध हो गया है कि अब यह पैशन नहीं रहा। यह कम्पैशन हो गया है।

काम-वासना में तुम दूसरे का साधन की तरह इस्तेमाल करते हो, तुम दूसरे का वस्तु की तरह इस्तेमाल करते हो। यही कारण है कि यौन-संबंधों में तुम अपराध-भाव का अनुभव करते हो। इस अपराध भाव का धार्मिक शिक्षा से कुछ लेना देना नहीं; वह अपराध-भाव धार्मिक शिक्षा से अधिक गहरा है। जैसे यौन-संबंध जैसे हैं उनमें तुम अपराध-भाव का अनुभव करते हो। तुम अपराध- भाव का अनुभव करते हो क्योंकि तुम मनुष्य को वस्तु बना रहे हो,एक उपयोगी वस्तु बना रहे हो, जिसका इस्तेमाल किया और फेंक दिया।

यही कारण है कि काम-वासना में तुम एक तरह का बंधन भी महसूस करते हो; तुम भी एक वस्तु की तरह इस्तेमाल हो रहे हो। और जब तुम वस्तु बन जाते हो तो तुम्हारी स्वतंत्रता छिन जाती है, क्योंकि तुम्हारी स्वतंत्रता तभी होती है जब तुम व्यक्ति होते हो।तुम्हारे कमरे का फर्नीचर स्वतंत्र नहीं है। यदि तुम अपने कमरे पर ताला लगा कर छोड़ दो और वर्षों बाद आओ तो फर्नीचर उसी स्थान पर होगा, उसी तरह; यह अपने आप को नए ढंग से व्यवस्थित नहीं करेगा। इसकी कोई स्वतंत्रता नहीं है। लेकिन यदि तुम एक व्यक्ति को कमरे में छोड़ दो तो तुम उसे वैसा ही नहीं पाओगे। अगले दिन भी नहीं, अगले क्षण भी नहीं। तुम व्यक्ति को पुन: वैसा ही नहीं पाते।

बुजुर्ग हैराक्लाइटस कहता है:तुम एक ही नदी में दो बार प्रवेश नहीं कर सकते। तुम एक ही व्यक्ति को दोबारा नहीं मिल सकते। एक ही व्यक्ति को दोबारा मिलना असंभव है,क्योंकि मनुष्य एक नदी है,लगातार बहता हुआ। तुम कभी नहीं जानते कि क्या होने वाला है।भविष्य खुला रहता है।वस्तु के लिये भविष्य बंद रहता है। एक चट्टान चट्टान रहेगी,बस एक चट्टान।इसमें विकास की कोई क्षमता नहीं। यह बदल नहीं सकती,विकसित नहीं हो सकती। एक व्यक्ति वैसा ही कभी नहीं रहता। वह वापस लौट सकता है, आगे बढ़ सकता है; नरक जा सकता है, स्वर्ग जा सकता है लेकिन वही नहीं रह सकता।वह चलता रहता है, इस ओर या उस ओर।

जब तुम्हारे किसी के साथ यौन-संबध होते हैं तो तुमने उसे एक वस्तु बना दिया है।और उसे वस्तु बनाने में तुमने स्वयं को भी एक वस्तु बना लिया है, क्योंकि यह एक परस्पर समझौता है:मैं तुम्हें मुझे वस्तु बनाने की अनुमति देता हूं और तुम मुझे तुम्हें वस्तु बनाने की अनुमति दो। मैं तुम्हें मुझे इस्तेमाल करने की अनुमति देता हूं और तुम मुझे तुम्हें इस्तेमाल करने की। हम एक दूसरे को इस्तेमाल करते हैं। हम दोनों वस्तु बन गए हैं।

इसीलिये...दो प्रेमियों को देखें:जब वो व्यवस्थित नहीं हुए,रोमान्स अभी जिंदा है, हनीमून अभी समाप्त नहीं हुआ। आप पाएंगे कि दो व्यक्ति जीवंत हैं,विस्फोट के लिये तैयार, अनजान के विस्फोट के लिये तैयार। और फिर एक विवाहित जोड़े को देखें,पति और पत्नि को। आप दो मुर्दा चीज़ों को देखेंगे, दो कब्रें साथ-साथ,एक दूसरे को मुर्दा रखने में सहायक, एक दूसरे को बलात मुर्दा बनाते हुए।

काम-वासना उस ऊर्जा का निम्नतम रूप है X. यदि तुम धार्मिक हो तो इसे परमात्मा कहो; और यदि वैज्ञानिक हो तो इसे X कहो। यह ऊर्जा,X, प्रेम बन सकती है। जब यह प्रेम बन जाता है तो तुम दूसरे का सम्मान करना प्रारंभ कर देते हो। हां, कई बार तुम दूसरे व्यक्ति को इस्तेमाल करते हो, लेकिन इसके लिये तुम धन्यवादी होते हो। तुम एक वस्तु को कभी धन्यवाद नहीं कहते।जब तुम किसी स्त्री के प्रेम में पड़ते हो और उससे प्रेम करते हो तो तुम उसका धन्यवाद करते हो।

जब तुम अपनी पत्नी को प्रेम करते हो तो क्या तुमने कभी यह कहा है कि तुम्हारा धन्यवाद?नहीं,इसे तुम अपना अधिकार समझते हो।क्या तुम्हारी पत्नी ने कभी तुमसे कहा है कि तुम्हारा धन्यवाद?शायद,बहुत वर्ष पहले, तुम याद कर सकते हो जब तुम दुविधा में थे,प्रयास कर रहे थे,प्रणय निवेदन कर रहे थे,एक दूसरे को फुसला रहे थे।शायद।लेकिन एक बार तुम व्यवस्थित हुए तो क्या उसने तुम्हें किसी बात के लिये धन्यवाद कहा है?तुम उसके लिये इतना कुछ करते रहे हो, वह तुम्हारे लिये इतना कुछ करती रही है,तुम दोनों एक-दूसरे के लिये जी रहे हो लेकिन अनुग्रह खो गया है।

प्रेम में अनुग्रह होता है, एक गहरी कृतज्ञता होती है। तुम जानते हो कि दूसरा एक वस्तु नहीं है।तुम जानते हो कि दूसरे की एक गरिमा है,एक व्यक्तित्व है,एक आत्मा है, एक विशिष्टता है।प्रेम में तुम दूसरे को पूर्ण स्वतंत्रता देते हो। निश्चित ही तुम देते भी हो और लेते भी हो; यह एक लेन-देन का संबध है... लेकिन सम्मान के साथ।

काम-वासना में लेन-देन का संबंध है लेकिन बिना किसी सम्मान के।करुणा में तुम केवल देते हो।तुम्हारे मन में यह विचार किंचित मात्र नहीं होता कि तुमने कुछ बदले में लेना है; तुम केवल बांटते हो। ऐसा नहीं कि कुछ मिलता नहीं! बदले में करोड़ गुना मिलता है, लेकिन वो अकारण है,एक प्राकृतिक परिणाम है।उसके लिये कोई ललक नहीं है।

प्रेम में यदि तुम कुछ देते हो तो गहरे में कहीं अपेक्षा रहती है कि इसका फल मिले। और यदि फल नहीं मिलता तो तुम्हें शिकायत रहती है। तुम चाहे ऐसा कहो न लेकिन हजारों ढंगों से यह परिणाम निकाला जा सकता है कि तुम असंतुष्ट हो, कि तुम्हें लगता है धोखा दिया गया है। प्रेम एक प्रकार का सूक्ष्म सौदा है।

करुणा में तुम बस देते हो।प्रेम में तुम अनुग्रहीत होते हो क्योंकि दूसरे ने तुम्हें कुछ दिया है।करुणा में तुम अनुग्रहीत होते क्योंकि दूसरे ने तुमसे कुछ लिया है;तुम अनुग्रहीत होते हो क्योंकि दूसरे ने तुम्हारा तिरस्कार नहीं किया।तुम आये थे अपनी ऊर्जा बांटने, तुम आये थे कई तरह के फूलों को बांटने और दूसरे ने तुम्हें स्वीकृति दी,दूसरा लेने को राजी हुआ।तुम अनुग्रहीत हुए क्योंकि दूसरा लेने को राजी हुआ।

करुणा प्रेम का उच्चतम रूप है। बदले में बहुत कुछ मिलता है,मैं कहता हूं करोड़ गुना ।लेकिन वह प्रश्न नहीं है।तुम उसके लिये लालायित नहीं होते। अगर ऐसा नहीं होता तो कोई शिकायत नहीं। अगर ऐसा होता है तो तुम बस आश्चर्यचकित होते हो! अगर ऐसा होता है तो यह अविश्वसनीय है। यदि ऐसा नहीं होता तो कोई समस्या नहीं। तुमने अपना हृदय किसी को किसी सौदे के रूप में नहीं दिया था। तुम बरसते हो क्योंकि बस तुम्हारे पास है।तुम्हारे पास इतना है कि यदि तुम न बरसो तो यह तुम पर बोझ हो जाएगा। ठीक वैसे ही जैसे पानी से भरे बादल को बरसना ही है। और अगली बार जब बादल बरस रहा हो तो चुपचाप देखना, तुम हमेशा सुनोगे कि जब बादल बरस चुका है और धरती ने इसे अपने में समा लिया है,तुम हमेशा सुनोगे कि बादल धरती से कह रहा है- तुम्हारा धन्यवाद।धरती ने बादल को बोझमुक्त होने में सहायता की है।

जब फूल खिल चुका है तो इसे अपनी सुगंध हवाओं से बांटनी ही है। यह प्राकृतिक है!फूल सुगंध से भरा है। यह क्या करे?यदि फूल सुगंध को अपने पास ही रखता है तो वह अत्यंत तनावग्रस्त हो जाएगा,गहन पीड़ा में।जीवन की अत्यधिक पीड़ा तब होती है जब तुम अभिव्यक्त नहीं कर सकते,प्रकट नहीं कर सकते,बांट नहीं सकते।सर्वाधिक गरीब व्यक्ति वह है जिसके पास बांटने को कुछ नहीं है,या जिसके पास बांटने को तो है पर उसने बांटने की क्षमता खो दी है, यह कला खो दी है कि कैसे बांटा जाए; तब व्यक्ति गरीब है।

कामुक व्यक्ति अत्यंत दरिद्र होता है। तुलना में प्रेमपूर्ण व्यक्ति अधिक धनी होता है। करुणावान व्यक्ति सर्वाधिक धनी होता है, वह सृष्टि के शिखर पर विराजमान है। उसकी कोई परिधि नहीं, कोई सीमा नहीं। वह बस देता है और अपनी रास्ते चला जाता है। वह तुम्हारे धन्यवाद की भी प्रतीक्षा नहीं करता। वह अत्यंत प्रेम से अपनी उर्जा को बांटता है। इसी को मैं स्वास्थ्य्प्रद कहता हूं।

बुद्ध अपने शिष्यों से कहा करते थे: प्रत्येक ध्यान के शीघ्र बाद करुणावान हो रहो, क्योंकि जब तुम ध्यान करते हो तो प्रेम बढ़ता है, हृदय प्रेम से भर जाता है। प्रत्येक ध्यान के बाद संपूर्ण संसार के लिये करुणा से भर जाओ ताकि तुम अपना प्रेम बांट सको और अपनी ऊर्जा को वातावरण में संप्रेषित कर सको और उस ऊर्जा का दूसरे इस्तेमाल कर सकें।

मैं भी तुमसे कहना चाहूंगा: प्रत्येक ध्यान के बाद जब तुम उत्सव मना रहे हो तो करुणावान हो रहो। ऐसा महसूस करो कि तुम्हारी ऊर्जा लोगों तक वैसे पहुंचे जैसे उन्हें जरूरत है। तुम बस इसे संप्रेषित कर दो! तुम भारमुक्त हो जाओगे, तुम अत्यंत विश्रांत महसूस करोगे, तुम अत्यंत शांत और स्थिर अनुभव करोगे और जो तरंगे तुमने संप्रेषित की हैं बहुत लोगों की सहायता करेंगी।हमेशा अपना ध्यान करुणा से समाप्त करो।

और करुणा बेशर्त होती है। तुम केवल उन लोगों के लिये ही करुणावान नहीं हो सकते जो तुम्हारे प्रति मैत्रीपूर्ण हैं, जो तुमसे संबंधित हैं।करुणा में सब सम्मिलित हैं...आंतरिक रूप में सब सम्मिलित हैं।तो यदि तुम अपने पड़ोसी के लिये करुणावान नहीं हो सकते तो ध्यान के बारे में सब भूल जाओ, क्योंकि इसका व्यक्ति विशेष से कुछ लेना-देना नहीं। इसका तुम्हारी आंतरिक अवस्था से कुछ लेना-देना नहीं। करुणा हो जाओ! बेशर्त,बिना किसी के प्रति,किसी व्यक्ति विशेष के लिये नहीं।तब तुम इस दु:ख भरे संसार के लिये एक स्वास्थ्य प्रदान करने वाली शक्ति बन जाते हो।

Thursday, September 4, 2008

भोजन प्रेम का परिपूरक


ओशो ने भोजन और प्रेम को कुछ ऐसे समझाया है!

भोजन सदा प्रेम का परिपूरक है. जो लोग प्रेम नहीँ करते, जिनके जीवन मेँ प्रेम की कमी है, वे ज्यादा खाने लगते हैँ; यह प्रेम-पूर्ति है.

जब बच्चा पैदा होता है तो उसका पहला प्रेम और पहला भोजन एक होता है—माँ. अत: भोजन और प्रेम मेँ गहरा सँबँध है; वास्तव मेँ भोजन पहने आता है और प्रेम बाद मेँ. पहले बच्चा माँ को खाता है, तब धीरे-धीरे उसे बोध होने लगता है कि माँ केवल भोजन नहीँ है; वह उसे प्रेम भी करती है. लेकिन उसके लिये एक विशेष विकास आवश्यक है. पहले दिन बच्चा प्रेम नहीँ समझ सकता. वह भोजन की भाषा समझता है, सभी पशुओँ की आदिम नैसर्गिक भाषा. बच्चा भूख के साथ पैदा होता है; भोजन अभी चाहिये. अभी बहुत दूर तक प्रेम की जरूरत नहीँ है; यह आपातकालीन परिस्थिति नहीँ है. प्रेम के बिना पूरा जीवन जीया जा सकता है, लेकिन भोजन के बिना नहीँ जीया जा सकता—यही तो मुश्किल है.

तो बच्चा भोजन और प्रेम के सँबम्ध को समझने लगता है. और धीरे-धीरे वह यह भी अनुभव करने लगता है कि जब भी माम अधिक प्रेमपूर्ण होगी, वह उसे अलग ढँग से दूध देगी. जब वह प्रेमपूर्ण नहीँ है, क्रोध मेँ है, उदास है तो वह बड़े अनमने से उसे दूध देगी या देगी ही नहीँ. अत: बच्चा जान जाता है कि जब भी माँ प्रेमपूर्ण है, जब भी भोजन उपलब्ध है तो प्रेम उपलब्ध है. जब-जब भोजन उपलब्ध नहीँ है तो बच्चे को लगता है कि प्रेम भी उपलब्ध नहीँ है और इसके विपरीत भी यही सच है. यह उसके अचेतन मेँ है.

कहीँ तुममेँ प्रेमपूर्ण जीवन की कमी है इसलिये तुम अधिक खाने लगते हो—यह उसका परिपूरक है. तुम अपने आपको भोजन से भरते रहते हो और भीतर कोई जगह नहीँ छोड़ते. तो प्रेम का तो सवाल ही नहीँ, क्योँकि भीतर कोई जगह ही नहीँ बची. और भोजन के साथ बात आसान है क्योँकि भोजन मृत है. तुम जितना चाहो उतना खा सकते हो—भोजन तुम्हेँ न नहीँ कह सकता. अगर तुम खाना बँद कर दोगे तो भोजन यह नहीँ कह सकता कि तुम मुझे अपमानित कर रहे हो. भोजन के साथ तुम मालिक रहते हो.

लेकिन प्रेम मेँ तुम मालिक नहीँ रह जाते. तुम्हारे जीवन मेँ कोई दूसरा प्रवेश कर जाता है, तुम्हारे जीवन मेँ निर्भरता प्रवेश कर जाती है. तुम स्वतँत्र नहीँ रह जाते,और यही भय है.

अहँकार स्वतँत्र रहना चाहता है और यह तुम्हेँ प्रेम नहीँ करने देगा. अगर तुम प्रेम करना चाहते हो तो तुम्हेँ अहँकार छोड़ना होगा.

प्रश्न भोजन का नहीँ है; भोजन केवल साँकेतिक है. तो मैँ भोजन के बारे मेँ कुछ नहीँ कहूँगा, भोजन कम करने या ऐसी किसी बात के बारे मेँ कुच्च नहीँ कहूँगा. क्योँकि उससे कुछ भी नहीँ होगा, तुम्हेँ सफलता नहीँ मिलेगी. तुम हजारोँ तरीके अपना सकते हो; लेकिन उससे कुछ नहीँ होगा. बल्कि मैँ कहूँगा, भोजन के बारे मेँ भूल जाएँ और जितना चाहेँ, उतना खाएँ.

प्रेम का जीवन शुरू करेँ, प्रेम करेँ, किसी को खोजेँ जिसे तुम प्रेम कर सको और अचानक तुम पाओगे कि तुम ज्यादा नहीँ खा रहे.

क्या तुमने कभी ध्यान दिया है?—जब तुम प्रसन्न होते हो तो तुम ज्यादा नहीँ खाते. जब तुम उदास होते हो तो तुम ज्यादा खाते हो. लोग सोचते हैँ कि जब तुम प्रसन्न होते हो तो तुम ज्यादा खाते हो, लेकिन यह बिलकुल झूठ है. प्रसन्न व्यक्ति इतना परितुष्ट होता है कि उसके भीतर कोई खालीपन नहीँ होता. अप्रसन्न व्यक्ति अपने अँदर भोजन ठूँसता रहता है.

तो मैँ भोजन की तो बात ही नहीँ छेड़ूँगा... और तुम जैसे हो, वैसे रहो, लेकिन प्रेम के लिये किसी को खोज लो जिसे प्रेम किया जा सके.
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तिल में तेल


मैं अंग्रेजी मैं ब्लॉग करता हूँ
पर बहुत सी बातें हैं जो अपनी भाषा के लोगों से करना चाहता हूँ
सबसे बड़ी समस्या थी हिंदी में टाइप करने की!
अब हिंदी में लिख सकता हूँ - इसलिए शुरू कर रहा हूँ-
अपना नया ब्लॉग-
तिल में तेल
मैंने चकमक और लुकाठी शब्द भी खोजे थे
पर ब्लागस्पाट ने बताया की वे शब्द पहले से इस्तेमाल हो रहे हैं
मेरी उत्सुकता हुई
सर्च मारा-
लुकाठी फ्रेंच ब्लॉग है
चकमक नाम का ब्लॉग andy का है
चलिए निकालते हैं- तिल का तेल-
'ज्यों तिल माहि तेल है औ चकमक में आग
तेरा साईं तुज्ह में जग सके तो जाग' -संत कबीर